भारत में जनजातीय समुदाय गरीबी, शोषण, भूमि अलगाव, सांस्कृतिक क्षरण और स्वास्थ्य एवं पोषण चुनौतियों सहित कई मुद्दों का सामना करते हैं, जिनके लिए सतत विकास और सशक्तिकरण के लिए लक्षित हस्तक्षेप और नीतियों की आवश्यकता होती है। आदिवासी मुक्ति सेना मिशन जनजातीय युवाओं में जागरूकता पैदा कर रहा है। भारत में जनजातीय समुदायों द्वारा सामना किए जाने वाले प्रमुख मुद्दे:
गरीबी और शोषण: जनजातीय समुदाय अक्सर उच्च स्तर की गरीबी का अनुभव करते हैं और जमींदारों, साहूकारों और व्यवसायों सहित गैर-आदिवासी समूहों द्वारा शोषण के प्रति संवेदनशील होते हैं।
भूमि अलगाव: विकास परियोजनाओं, खनन और अन्य गतिविधियों के कारण भूमि का नुकसान और विस्थापन एक बड़ी चिंता का विषय है, जो उनकी आजीविका और पारंपरिक जीवन शैली को प्रभावित करता है।
सांस्कृतिक क्षरण: जनजातीय समुदायों का मुख्यधारा के समाज में एकीकरण उनकी अनूठी सांस्कृतिक प्रथाओं, भाषाओं और पहचान को खत्म कर सकता है।
स्वास्थ्य और पोषण: जनजातीय क्षेत्रों में अक्सर स्वास्थ्य सेवा और पौष्टिक भोजन तक सीमित पहुंच होती है, जिससे कुपोषण और स्वास्थ्य समस्याओं की दर अधिक होती है।
शिक्षा और साक्षरता: आदिवासी समुदायों में शिक्षा और साक्षरता का निम्न स्तर उनकी सामाजिक और आर्थिक उन्नति में बाधा डालता है।
विस्थापन और पुनर्वास: विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापन अक्सर अपर्याप्त पुनर्वास और पुनर्स्थापन की ओर ले जाता है, जिससे आदिवासी समुदायों के लिए और भी कठिनाई पैदा होती है।
पहचान का संकट: आदिवासी समुदायों को तेजी से हो रहे सामाजिक और आर्थिक बदलावों के कारण अपनी पहचान और पारंपरिक संस्थाओं को बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
प्रवास:आदिवासी क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में प्रवास के कारण और अधिक हाशिए पर जाने और शोषण की स्थिति पैदा हो सकती है।
संसाधनों तक पहुँच का अभाव:आदिवासी समुदायों के पास अक्सर स्वच्छ जल, स्वच्छता और बुनियादी ढाँचे जैसे आवश्यक संसाधनों तक पहुँच का अभाव होता है।
प्राकृतिक संसाधनों का शोषण: आदिवासी समुदायों का अक्सर बाहरी लोगों द्वारा शोषण किया जाता है जो उचित मुआवज़ा या उनकी ज़रूरतों पर विचार किए बिना उनकी ज़मीन से प्राकृतिक संसाधनों का